बुधवार, 26 दिसंबर 2007

शिला का अहिल्या होना

शिला का अहिल्या होना

क्या अहिल्या इस युग में नहीं है
पति के क्रोध से शापित ,निर्वासित,निस्स्पंद ,शिलावत
वन नहीं भीड -भाड भरे शहर में , वैभव पूर्ण - विलासी जीवन में
रोज़ रात को मरती है बिस्तर पर अनचाहे संबंधों को जीने को विवश
भरसक नकली मुस्कान और सुखी जीवन का मुखौटा ओढे
एक राम की अनवरत प्रतीक्षा में रत इस अहिल्या को कौन जानता है?
उस अहिल्या को कम से कम यह तो पता था कि आयेंगे राम
अनंत प्रतीक्षारत शिला को अपने स्पर्श से बदलेंगे अहिल्या में
लौटेगी अपने पति के पास नया जीवन पाकर हर्षितमना
सब कुछ होगा पहले-सा ,कुटी भी ,पति-परमेश्वर भी

पर क्या ये अहिल्या चाहेगी लौटना अपने उस पति के पास
दिया जिसने शापित जीवन निर्दोष , निरपराध नारी को
क्या सब कुछ भूल कर अपनायेगी उस पति को
जो हो सकता है फिर से दे दे शापित जीवन का उपहार
तब कहाँ से पायेगी उद्धार का एक और अवसर राम के बिना

पर यक्ष-प्रश्न तब नहीं उठा तो क्या आज अब नहीं उठेगा
कि आज की ये अहिल्या अकेली भी तो रह सकती है
क्योंकि राम को तो आगे और आगे दूर तक जाना है
जहाँ न जाने कितनी शिलाएँ प्रतीक्षारत हैं अहिल्या होने को
आज के नये राम को भी तो आगे और आगे जाना है दूर तक
भले ही इसे कामोन्मत्त शूर्पनखा का दर्प-दमन भी करना न हो
अशोक वाटिका की बंदिनी सीता को रावण से मुक्त कराना भी न हो
लौट कर अयोध्या सीता को फिर से शंकित पति की तरह त्यागना भी न हो

तो यक्ष- प्रश्न अब भी है कि अहिल्या का उद्धार हुआ तो क्या हुआ?
सीता रावण की अशोक-वाटिका से मुक्त हुई भी तो क्या भला हुआ?
लव-कुश तो फिर भी बिना पिता के ही आश्रम में पलने को विवश हुए
अंतिम सत्य तो यही है कि हर युग में राम की नियति है वह सब करने की
और अहिल्या और सीता की नियति है फिर फिर उसी जीवन में लौट जाने की

वशिनी शर्मा
वर्जिनीया,2007

3 टिप्‍पणियां:

vashini sharma ने कहा…

बहुत ही संवेदनशील अनुभूति है

मीरा सरीन

जानकी ने कहा…

आज और कल में कोई फर्क नही है जबतक पुरुष को अपने से अधिक मानेंगे यही होता रहेगा ।

बेनामी ने कहा…

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