सोमवार, 26 मई 2008

शिला का अहिल्या होना

शिला का अहिल्या होना

क्या अहिल्या इस युग में नहीं है
पति के क्रोध से शापित ,निर्वासित,निस्स्पंद ,शिलावत
वन नहीं भीड -भाड भरे शहर में ,
वैभव पूर्ण - विलासी जीवन में
रोज़ रात को मरती है बिस्तर पर
अनचाहे संबंधों को जीने को विवश
भरसक नकली मुस्कान और सुखी जीवन का मुखौटा ओढे
एक राम की अनवरत प्रतीक्षा में रत
इस अहिल्या को कौन जानता है?
उस अहिल्या को कम से कम यह तो पता था
कि आयेंगे राम अनंत प्रतीक्षारत शिला को
अपने स्पर्श से बदलेंगे अहिल्या में
लौटेगी अपने पति के पास
नया जीवन पाकर हर्षितमना
सब कुछ होगा पहले-सा ,
कुटी भी ,पति-परमेश्वर भी
पर क्या ये अहिल्या चाहेगी लौटना
अपने उस पति के पास
दिया जिसने शापित जीवन
निर्दोष , निरपराध नारी को
क्या सब कुछ भूल कर
अपनायेगी उस पति को
जो हो सकता है फिर से
दे दे शापित जीवन का उपहार
तब कहाँ से पायेगी
उद्धार का एक और अवसर राम के बिना
पर यक्ष-प्रश्न तब नहीं उठा
तो क्या आज अब नहीं उठेगा
कि आज की ये अहिल्या
अकेली भी तो रह सकती है
क्योंकि राम को तो
आगे और आगे दूर तक जाना है
जहाँ न जाने कितनी शिलाएँ
प्रतीक्षारत हैं अहिल्या होने को
आज के नये राम को भी तो
आगे और आगे जाना है दूर तक
भले ही इसे कामोन्मत्त शूर्पनखा का
दर्प-दमन भी करना न हो
अशोक वाटिका की बंदिनी सीता को
रावण से मुक्त कराना भी न हो
लौट कर अयोध्या सीता को
फिर से शंकित पति की तरह त्यागना भी न हो
तो यक्ष- प्रश्न अब भी है
कि अहिल्या का उद्धार हुआ तो क्या हुआ?
सीता रावण की अशोक-वाटिका से
मुक्त हुई भी तो क्या भला हुआ?
लव-कुश तो फिर भी बिना पिता के ही
आश्रम में पलने को विवश हुए
अंतिम सत्य तो यही है
कि हर युग में राम की नियति है वह सब करने की
और अहिल्या और सीता की नियति है
फिर फिर उसी जीवन में लौट जाने की

वशिनी शर्मा वर्जिनीया,2007

हिंदी उत्सव -लेख

अंतर्राष्ट्रीय हिंदी उत्सव(12, 14 जनवरी 2007)विदेशी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण(भाषिक संस्कृति शिक्षण के संदर्भ में)प्रो. वशिनी शर्माविदेशी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण का अंतर्राष्ट्रीय महत्व शैक्षिक एवं वैश्विक संदर्भों में अब विचार या चर्चा का क्षेत्र न रह कर सक्रिय कार्यान्वयन की महती भूमिका की अपेक्षा कर रहा है। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं, अखिल भारतीय स्वैच्छिक संस्थाओं एवं विभिन्न वि.वि. के प्रयासों के बाद भी अंतर्राष्ट्रीय मानक पाठ्यक्रम और उपयुक्त सामग्री की माँग बनी हुई है। उक्त दिशा में समेकित समग्र प्रयासों का एकीकृत संचालन कई विश्व हिंदी सम्मेलनों की विचार गोष्ठियों का मुख्य विषय भी रहा। इस स मय प्रमुख रूप से विदेशी भाषा के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी शिक्षण का प्रयास कर रहे संस्थान हैं- केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, दिल्ली केंद्र; महात्मा गाँधी अं.वि.वि. वर्धा; कें.हि. निदेशालय, नई दिल्ली का विदेशियों के लिए पाठ्यक्रम। वैसे कई विश्वविद्यालयों में भी विदेशियों के लिए हिंदी शिक्षण के पाठ्यक्रम चलाये जा रहे हैं जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय।केंद्रीय हिंदी संस्थान की हिंदी के शिक्षण-प्रशिक्षण, हिंदी शिक्षण की अधुनातन विधियों के विकास, हिंदी के क्षेत्र में मूलभूत अनुसंधान, हिंदी भाषा के अन्य भाषाओं के साथ व्यतिरेकी अध्ययन, हिंदी भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में शोध आदि में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार की योजना के अंतर्गत संस्थान वर्षों से विदेशों से हिंदी सीखने आए छात्रों को प्रशिक्षित कर रहा है। इस योजना के अंतर्गत विदेशी हिंदी शिक्षण विभाग की 1991-92 में संस्थान के मुख्यालय, आगरा में शुरूआत हुई। इसके पूर्व विदेशी छात्रों के लिए सभी पाठ्यक्रम संस्थान के दिल्ली केंद्र पर संचालित होते थे। अब मुख्यालय आगरा में भारत सरकार की विदेशों में हिंदी की प्रचार-प्रसार योजना एवं सांस्कृतिक आदान प्रदान योजना के अंतर्गत चयनित छात्र हिंदी अध्ययन हेतु आते हैं।केंद्रीय हिंदी संस्थान के विदेशी हिंदी शिक्षण विभाग में निम्नलिखित पाठ्यक्रम आयोजित किए जाते हैं-1. हिंदी भाषा दक्षता प्रमाण पत्र (100)2. हिंदी भाषा दक्षता डिप्लोमा (200)3. हिंदी भाषा दक्षता उच्च डिप्लोमा (300)4. हिंदी भाषिक अनुप्रयोग डिप्लोमा (400)5. हिंदी शोध अनुप्रयोग डिप्लोमा (500)विभिन्न पाठ्यक्रमों के अंतर्गत छात्रों में भाषा के विभिन्न कौशलों- श्रवण, भाषण, वाचन एवं लेखन- का विकास किया जाता है, साथ ही छात्रों में हिंदी साहित्य की विभिन्न शैलियों एवं विधाओं की समझ भी विकसित की जाती है, उच्च स्तर पर हिंदी भाषा और साहित्य के विकास, हिंदी के भाषावैज्ञानिक अध्ययन, हिंदी संरचना, विभिन्न भाषाओं में परस्पर अनुवाद के सिद्धांत, हिंदी साहित्य शिक्षण, भाषा शिक्षण एवं सामग्री निर्माण जैसे विषयों में भी छात्रों को प्रशिक्षित किया जाता है। इधर शोध स्तरीय पाठ्यक्रम में भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अध्ययन को भी जोड़ा गया है। यह विषय विदेशी छात्रों के संदर्भ में विशेष महत्व का है।भाषिक संस्कृति का शिक्षणःमात्र भाषा उपार्जन के क्रम में भाषायी संस्कृति अनायास ही आत्मसात कर ली जाती है। पर अन्य भाषा के रूप में इसे सीखना होता है। भाषा पर पर्याप्त अधिकार करने के लिए उसके सांस्कृतिक पक्ष की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक होता है। इसके लिए उस भाषा भाषी जनता की जीवन-शैली, रीति-रिवाजों सामाजिक और आर्थिक नैतिक परम्परा तथा उनके जीवन मूल्यों से छात्रों को परिचित कराना जरूरी होता है। विदेशी भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण की समस्याएँ प्रवासी भारतीय छात्रों एवं अन्य देशों के छात्रों के लिए एक-सी नहीं हैं।चारों भाषा कौशलों के विकास के साथ अध्येय भाषा की संस्कृति का बोध अतिरिक्त कौशल के रूप में विकसित किया जाता है। विदेशी भाषा शिक्षण में भाषा कौशलों के विकास के साथ-साथ छात्रों को उस भाषा की संस्कृति से भी परिचित कराया जाना चाहिए। भाषा में प्रयुक्त शब्दों, वाक्यांशों तथा वाक्यों का अर्थ भाषायी संस्कृति से नियंत्रित होता है। मातृ-भाषा के प्रयोक्ता के लिए वह सहज रूप से ही सीखा जाता है। लक्ष्य भाषा की जीवन शैली सांस्कृतिक संदर्भ में अर्थ छटाओं और जीवन मूल्यों से परिचित न रहने पर विविध भाषायी कौशलों का ज्ञान होने पर भी छात्र भाषिक अभिव्यक्तियों का सही प्रयोग करने में असफल रहता है। जैसे किसी की मृत्यु के बाद सीधे-सीधे यह सूचना न देकर इस तरह कहा जाता है-स्वर्गवासी हो गये, परलोक सिधार गए, गुजर गए, इस दुनिया में नहीं रहे, खुदा को प्यारे हो गये आदि...भाषीय संस्कृति शिक्षण की अनिवार्यताः-1. व्यक्ति की निजी सांस्कृति चेतना के विकास में सहायक2. व्यवहारिक कुशलता के विकास में सहायक3. अध्येय भाषा की संस्कृति के समझ में सहायक4. भाषा के अधिगम और प्रभावी शिक्षण में सहायक5. भाषायी संस्कृति के कारण व्यापक दृष्टिकोण का विकास6. विभिन्न प्रकार के भाषायी व्यवहारों एवं कार्यों को समझने के लिए7. विभिन्न संदर्भों में प्रयुक्त विशिष्ट शब्दावली उनमें निहित सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों तथा विशिष्ट भाषा सांचों को सिखाने की आवश्यकता के लिए जैसे- आदर सूचक “जी और हैं” का प्रयोग एक वचन के लिए जैसे वे आज नहीं आ रहे हैं। या राजबब्बर सफल रहे हैं।8. हिंदी में प्रयुक्त मुहावरे तथा कहावतों का उदाहरणों द्वारा सटीक प्रयोग भी जरूरी होता है।जैसे- रास्ता भूलना, पाठावली 100,जब कभी भी पुराना मित्र या परिचित व्यक्ति एक दूसरे से अधिक समय बाद मिलने आता है। तो पूछने का यह भी एक ढंग है- “कहो भाई कैसे रास्ता भूल गए” अर्थात बहुत दिनों बाद याद किया।साहित्य के अध्ययन के लिए संस्कृति का ज्ञान अपेक्षित है-1. साहित्य प्रसंगों में आने वाले संदर्भों को समझने के लिए-i. व्यंजनों के नामii. देवी देवताओं के नामiii. गहनों के नामiv. रिश्ते-नाते की शब्दावलीv. भौगोलिक एवं ऐतिहासिक संदर्भvi. पौराणिक एवं धार्मिक प्रसंगvii. प्रतीकों का सांस्कृतिक महत्वviii. मान्यताओं एवं विश्वाससंस्कृति शिक्षण का क्रम सारे शिक्षण के दौरान सूचारू क्रमबद्ध एवं नियमित हो भारतीय संस्कृति, भारतीय धर्म, भारतीय त्यौहार से संबंधित ज्ञान सभी स्तर की पाठावली में श्रेणीकृत, स्तरीकृत रूप में दिए गए हैं।तुलनात्मक परियोजना कार्य मातृ-भाषा एवं अन्य-भाषा संस्कृति का तुलनात्मक अध्ययन लघु-परियोजना कार्य के माध्यम से संपन्न कराया जा सकता है। संस्कार रीति-रिवाज, मान्यताएँ, साहित्यिक रचनाएँ, मुहावरे आदि से संबंधित लघु परियोजना कार्य विभिन्न छात्रों द्वारा विगत वर्षों में करवाया गया। भाषा खेलों द्वारा भी विभिन्न प्रकार के संदर्भों में प्रश्नोत्तर, मिलान, क्रासवर्ड पहेली आदि के द्वारा रोचक ढंग से संस्कृति का शिक्षण किया जा सकता है।विश्व के विभिन्न देशों से हिंदी सीखने आने वाले ये छात्र हिंदी को एक नया वैश्विक स्वरूप और संदर्भ प्रदान करते हैं। ये सब हिंदी सीखते तो एक ही रूप में हैं, पर इनके व्यवहार में हिंदी का स्वरूप इनकी अपनी भाषाओं की सुगंध और मिठास लिए होता है। इंडोनेशिया के छात्र ‘श’ नहीं बोल पाते तो जापान के ‘र-ल’ में अंतर नहीं कर पाते; गयाना, सूरीनाम के छात्र ‘ने’ का प्रयोग नहीं करते; अधिकांश छात्र ‘चाहिए’/ ‘चाहता हूँ’ का अंतर नहीं जानते। फिर भी ये सब हिंदी पसंद करते हैं, पढ़ना चाहते हैं, सीखना चाहते हैं, हिंदी में रिक्शेवाले से, सब्जी वाले से, दुकानदार से, अपने साथियों से- सभी से बात करना चाहते हैं। मेरे विचार से हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप के सच्चे नियामक यही छात्र हैं। जब हम अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में हिंदी की बात करते हैं, तो मुझे लगता है कि हमें सिर्फ केंद्रीय हिंदी संस्थान में पढ़ाई जाने वाली मानक भाषा हिंदी को ही नहीं देखना है, बल्कि इन छात्रों द्वारा प्रयुक्त, स्थापित, सिद्ध हिंदी भी हैं, जो इनके मध्य सम्पर्क- सूत्र का कार्य करती है। यह संपर्क- भाषा हिंदी ही वस्तुतः हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप है।विभिन्न देशों, विभिन्न कालों में विभिन्न विद्वानों, लेखकों, कवियों ने बार-बार यही बात दोहराई है कि मानव का स्वभाव, मनोभाव, आदतें, मनोवृत्तियाँ कहीं भी, कभी भी बदलती नहीं है, चाहे वह कोई देश हो, कोई जाति हो, कोई रंग हो, कोई समय हो, कोई सभ्यता हो, कोई संस्कृति हो। मुस्कान की, खुशी की, गम की, आँसुओं की भाषा एक सी है, देश-प्रेम की, ईश्वर भक्ति की, मोहब्बत की, नफरत की अभिव्यक्ति सब जगह एक सी है, शादी, विवाह, त्योहार, उत्सव के संदर्भ में भी सब जगह परंपराएँ, मान्यताएँ एक-सी हैं, विश्वास, आस्थाएँ भी सब की एक समान हैं। हमारी संस्कृति में जैसे प्रेम संबंध को जोड़ने के लिए एक सूत्र को प्रतीक माना जाता है, वैसे ही बल्गारिया में भी माना जाता है कि एक समय विशेष पर दूसरों की कलाई में बांधा जाने वाला धागा हमारे प्रेम, शुभकामनाओं और शुभेच्छा का प्रतीक है। भारत की तरह उक्रेन में भी माता-पिता की अनुमति विवाह की सफलता के लिए आवश्यक मानी जाती है। देश प्रेम की अभिव्यक्ति श्रीलंका और भारत में समान है। आँसुओं की, प्रेम की, इज़हार की, इंकार की अभिव्यक्ति विश्व के हर कोने में समान है।विदेशी छात्रों के लिए संस्थान द्वारा निर्मित पाठ्य सामग्री में जिन भाषिक एवं सांस्कृतिक बिन्दुओं को लक्ष्य में रखकर भाषा शिक्षण की समस्यों के समाधान की कोशिश की गई हैं वे इस प्रकार हैं-1. पाठ2. प्रश्‍न3. शब्दार्थ4. सांस्कृतिक टिप्पणी5. मुहावरे/ कहावतें6. अभ्यास7. भाषा कौशल एवं संस्कृति शिक्षण सहायक सामग्रीयहाँ यह कहना समीचीन होगा कि यह पाठ्य सामग्री श्रीलंका में भी उपयोग के लिए भेजी गयी है। अतः निश्चित ही है कि इसकी सहायक सामग्री अर्थात् श्रव्य-दृश्यात्मक सामग्री, आडियो विडियो, सी.डी) उपलब्ध करायी जायेगी। यह भी उल्लेखनीय है कि अन्य कई विदेशी विश्वविद्यालयों द्वारा पाठ्यक्रम निर्माण में संस्थान से सहयोग की मांग की गई है।संस्थान की नवीनतम योजनाओं में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी भाषा शिक्षण सी.डी. निर्माण और साहित्य सी.डी. निर्माण की योजना चल रही है। प्रथम योजना में भाषा के विदेशी भाषा के रूप में शिक्षण हेतु सी.डी. निर्माण की योजना है। साहित्य सी.डी. निर्माण योजना में हिंदी साहित्य को विभिन्न कालों के प्रमुख कवियों की काव्यात्मक, आवृत्ति परक एवं संगीतमय प्रस्तुति की जाएगी जो युवा पीढ़ी के मानस में, साहित्यिक अभिरूचि उत्पन्न कर सकेगी। इसमें उर्दू के कुछ प्रमुख कवियों को भी शामिल किया गया है। संस्थान इसके अतिरिक्त ‘हिंदी ऑन लाइन’ और ‘भाषा मंदाकिनी नामक’ दो महत्वकांक्षी परियोजनाओं के द्वारा दूरस्थ हिंदी भाषा शिक्षण के क्षेत्र में नये प्रतिमान स्थापित करने का आकांक्षी भी है।भाषा प्रौद्योगिकी एवं भाषायी संस्कृति शिक्षण सामग्रीकें.हिं.सं. के मुख्यालय में तीन भाषा प्रयोगशालाएँ हैं जिनमें श्रव्य, दृश्य एवं कंप्यूटर साधित सामग्री का प्रयोग भाषा कौशलों के शिक्षण में किया जाता है। जो इस प्रकार हैंi. श्रव्य/दृश्य-श्रव्य सामग्री- उच्चारण, वाचन-बोधन, वार्तालाप, भाषण, परिचर्चा कविता वाचन, कहानी वाचन-बोधन, लोक कथाएँ-देशी, विदेशीii. सांस्कृतिक सामग्री- गीत, संगीत, नृत्य, पर्यटन स्थल, कवि सम्मेलन, नाटक, मेले, उत्सव, सांस्कृतिक आयोजन की सामग्री।iii. फिल्मों/धारावाहिकों/अन्य कार्यक्रमों से सामग्री-अ) साहित्यिक कृतियों पर आधारित फिल्में/सी.डी.आ) लोकप्रिय सुरुचिपूर्ण फिल्में/धारावाहिक (रामायण, महाभारत, चाणक्य)इ) फिल्मी गीत, संवाद, वर्णनiv. संप्रेषणात्मक सामग्री1. चित्र, विज्ञापन, समाचार-वाचन, आँखों देखा हाल ।2. भाषा खेल- अंत्याक्षरी, पहेली बूझना, क्रासवर्ड, पहेली, क्विज़ आदिv. सक्रिय गतिविधियाँअ) संदर्शन, पर्यटन, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सहभागिताआ) प्रतियोगिताएँ- वाद-विवाद, कविता वाचन, स्वरचित कविता वाचन, भाषण आदिइ) गायन, वादन, नृत्य, अभिनय प्रतियोगिताएँई) योग, चित्रकला, संगीत एवं नृत्य का प्रशिक्षणउ) संस्कृत भाषा का शिक्षण- अतिरिक्त भाषा ज्ञान के लिए।अंत में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी शिक्षण के क्षेत्र में भाषा शिक्षण सामग्री निर्माण में उन संभावनाओं की संक्षिप्त चर्चा की गयी है जो हिंदी के क्षेत्र में कार्यरत सभी संस्थाओं से सक्रिय भूमिका की अपेक्षा करती है।1. मल्टीमीडिया भाषा शिक्षण पैकेजस का निर्माण2. दृश्यात्मक कोश, संदर्भ एवं परिचयात्मक भाषा संस्कृति कोश.3. छात्रोपयोगी व्याक रण ग्रन्थ।4. वार्तालाप/ फ्रेजबुक पुस्तिकाएं (प्रयोजनपरक) छात्रों के लिए, पर्यटकों के लिए रोजगार के लिए।5. टी.वी. एवं अन्य जनसंचार माध्यमों का भाषा शिक्षण में प्रभावी उपयोग।6. फिल्मों एवं फिल्मी गीतों और संवादों का भाषा शिक्षण में प्रभावी उपयोग।भाषा शिक्षण में शैक्षिक सहायक सामग्री- निर्माता संस्थान।1. केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा।2. केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली।3. रा. शै. एवं अ. प., नई दिल्ली।4. इन्दिरा गांधी, मुक्त वि.वि., नई दिल्ली।5. अन्तर्राष्ट्रीय महात्मा गांधी हि. वि. वि. वर्धा।6. साहित्य अकादमी, नई दिल्ली।7. सी.डेक, पुणे8. गैर सरकारी प्रयासअ) सी.ई.सी. ऐजूवेयर, नई दिल्लीब) टी.वी.एन.एफ. कंपनी, नई दिल्लीस) मैरीगोल्ड, कंपनी, नई दिल्ली।

जैजैवंती कार्यक्रम -19 मई 2008



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