रविवार, 8 अगस्त 2010
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मैं क्या हूँ /जन्म लेना और पलना मेरे हाथ में नहीं था / पर खूब प्यार से पली /कोई दुख -दर्द नहीं /एक प्रेमिल मन के हाथों आँचल इतना भरा कि सब कुछ भीग गया /लिखना कम पढना अधिक /साहित्य से अच्छे पाठक का नाता बना रहा / अभी भी बना हुआ है/ नारी मन को समझने का प्रयास मात्र /और क्या --
2 टिप्पणियां:
इस रत्न को आपने कहां से ढूंढ निकाला वशिनी जी? कोटिश: आभार भी कम हैं.
धन्यवाद !प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ|
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