शनिवार, 17 जनवरी 2009
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मैं क्या हूँ /जन्म लेना और पलना मेरे हाथ में नहीं था / पर खूब प्यार से पली /कोई दुख -दर्द नहीं /एक प्रेमिल मन के हाथों आँचल इतना भरा कि सब कुछ भीग गया /लिखना कम पढना अधिक /साहित्य से अच्छे पाठक का नाता बना रहा / अभी भी बना हुआ है/ नारी मन को समझने का प्रयास मात्र /और क्या --
1 टिप्पणी:
वाशिनी जी,
आपका परिचय पढ़कर अच्छा लगा। नियमित लिखिये। अपने ब्लाग की सूचना हिन्दी के ब्लागेग्रीगेटरों - नारद, ब्लागवाणी एवं चिट्ठाजगत को अवश्य दे दें।
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